हम कब, क्यों और कैसे चाँद पर बस्तियां बसाएंगे


चार दशक पहले अपोलो अभियानों के बाद इंसान के ज़ेहन में चाँद पर बस्तियां बसाने का विचार आया जो अभी तक विज्ञान की कल्पित-कथाओं का विषय बना हुआ है.
लेकिन अंतरिक्ष-विज्ञानी फिल प्लेट का तर्क है कि मुद्दा ये नहीं है कि इंसान वहां रह पाएगा या नहीं, बल्कि ये है कि वो वहां क्यों रहना चाहता है और कैसे रहेगा
क्या इंसान एक बार फिर चाँद की सतह पर चहलकदमी करेगा, मुझे हां कहने में कोई संकोच नहीं है क्योंकि ये भविष्य की बात है और 1950 के दशक में कौन यह भविष्यवाणी करने का साहस जुटा पाया था कि हम बीस साल के भीतर चाँद की ज़मीन पर अंतरिक्ष यान उतार देंगे.
लेकिन इस मामले में जबाव संभवत: उतना रोचक नहीं होगा जितना ये सवाल रोचक है कि हम कब, क्यों और कैसे चाँद पर बस्तियां बसाएंगे?
मैं ऐसे कई संभावित परिदृश्यों के बारे में सोच सकता हूं जिनकी वजह से हम चाँद पर बस्तियां बसाएंगे, जैसे अर्थव्यवस्था में इतना जबर्दस्त उछाल आए कि हम महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष अन्वेषण कार्यक्रमों में पैसा लगा सकें, जिसकी लागत अपेक्षाकृत कम हो या फिर ऐसा हो कि चाँद पर बड़ी मात्रा में प्राकृतिक संसाधन खोज निकाले जाएं.
ऐसे में ये एक बेहतर सवाल होगा कि चाँद पर इंसानी बस्ती बसाने का संभावित तरीका क्या होगा. आज हमारे पास जो जानकारी मौजूद है, उसके आधार पर इस संभावना के बारे में मेरे पास एक विचार है.

चाँद ही क्यों?

बस्तियां बसाने के लिए हम चाँद पर ही क्यों जाएं? अंतरिक्ष अन्वेषण की पहल के लगभग 60 वर्ष के इतिहास में इसका जवाब स्वाभाविक है कि हमारे पास संचार के साधन हैं, हम मौसम का पूर्वानुमान लगा सकते हैं, जलवायु परिवर्तनों को समझ सकते हैं,

हमारे पास ग्लोबल पोज़िशनिंग तकनीक है, धरती और इसके पर्यावरण के बारे में गहन जानकारी और संभावित आपदाओं की चेतावनी हैं.
तकनीक दिनोदिन उन्नत हो रही हैं. इन्फ्रा-रेड इयर थर्मामीटर और एलईडी आधारित उपरकरण बन रहे हैं जो चाँद पर मददगार साबित होंगे.
इसलिए अंतरिक्ष अन्वेषण न केवल एक उम्दा विचार है बल्कि इसने धरती पर जीवन में भी कुछ वास्तविक बदलाव कर दिए हैं. हम चाँद पर पहले ही छह बार हो आए हैं.
अपोलो 17 मिशन सबसे अधिक तीन दिनों तक चाँद पर रहा था जहां 3.8 करोड़ वर्ग किलोमीटर जमीन है जहां इमारतें बनाई जा सकती हैं.

मनमोहक और दिलचस्प है चाँद

विज्ञान के नज़रिए से देखें तो चाँद बड़ा मोहक और दिलचस्प है. वैसे तो हमें पक्के तौर पर पता है कि अरबों साल पहली हुई कुदरती उथल-पुथल से धरती से जो टुकड़े निकले, चाँद उन्हीं से बना है.
इसमें कोई संदेह नहीं कि चाँद पर जाना बड़ा खर्चीला है. अनुमानित लागत लगभग 35 अरब डॉलर है. वैसे ये भी ध्यान देने वाली बात है कि इंसान वहां जाने के बाद वहीं मौजूद संसाधनों का इस्तेमाल करने लगेगा तो दीर्घकाल में पैसे की बचत ही होगी.
हम जानते हैं कि चाँद पर बड़ी मात्रा में बर्फीला पानी है और चट्टानों में ऑक्सीजन कैद है. इसलिए चाँद के भावी नागरिकों के लिए हवा और पानी की जरूरतें पूरी की जा सकती हैं. इस दिशा में काफी काम पहले ही हो चुका है और आगे भी संभावनाएं अच्छी नज़र आती हैं.
चाँद पर जाने की अन्य वजहें हैं- वहां हीलियम से बड़ी सस्ती ऊर्जा के दोहन की क्षमता है. पर्यटन की संभावनाएं तो हैं हीं.
सूर्य का चक्कर लगाते हुए मंगल और वृहस्पति ग्रह के बीच अरबों उल्का-पिंड घूम रहे हैं, कई ऐसी चट्टानें चक्कर लगा रही हैं जिनका आकार फुटबॉल के बराबर और इससे कई गुना बड़ा भी है. इनमें से अधिकतर चट्टानों में पानी, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन और कई तरह की मूल्यवान धातुएं भी हैं.
प्लेनेटरी रिसोर्सेज़ नामक एक कंपनी इनका दोहन करने की अपनी योजनाओं की घोषणा पहले ही कर चुकी है जिनका इस्तेमाल भावी अंतरिक्ष अभियानों के लिए किया जाएगा. काम खर्चीला है लेकिन दीर्घकाल में इससे मुनाफे की उम्मीद है.
उल्का-पिंडों से काम की चीजें कैसे निकाली जाएं, नासा इस पर अध्ययन कर रहा है. एक विचार ये है कि इस सामग्री का इस्तेमाल कम लागत पर अंतरिक्ष में किसी तरह का ढांचा खड़ा करने में किया जा सकता है.
हमें अंतरिक्ष में जाने का सस्ता और सुलभ जरिया चाहिए. हाल में ही स्पेस एक्स फॉल्कन 9 रॉकेट और ड्रेगन कैप्सूल को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए रवाना किया गया. ये दो कदम बड़े मददगार साबित हो सकते हैं. चीन, भारत और रूस अंतरिक्ष में अपने पांव पसारने के लिए बड़े जतन कर रहे हैं


                                  QR Codes for Mobile Websites

The QR (Quick Response) Code is one of the most exciting new innovations in marketing. In order for QR codes to be effectively used, they have to direct users to a mobile-optimized website, not a regular desktop website. With SiteMother's mobile website software you can create unlimited web pages and unlimited QR codes.

Customize the QR code's size/color, and then download an image file (JPG, PNG, EPS). Print your moible site's QR code for you mobile site on business cards, flyers, brochures, signs, products, doors, windowns, vehicles and all advertisements for your business. QR codes can be scanned from a computer screen so you can even insert them on your desktop website, your Facebook page, and any online ads.
How do I scan a QR code?
QR codes can be scanned by most mobile devices that have a camera. You can download a free app for your Android, iPhone or Blackberry smart phone. Just search your mobile app marketplace for "qr code" or "barcode scanner". Once you have the app just open it up and hold it to the QR code. You will then be directed to the URL associated with the QR code.


QR Code Use Examples

Real Estate
  • Property Signs: potential buyers or tenants can drive by a property and simply scan a QR code on the lawn sign to instantly see photos and details about the sale or lease.
  • Open Houses: potential buyers can scan a QR code as they walk into a home and then bookmark the listing page for future reference. Eliminate costly flyers forever!
  • Retail Property for Lease: potential tenants can scan a QR code posted on the property's front door or window to instantly see photos of the space and lease terms.
  • Business Cards: all real estate agents need to get a mobile website and should place a QR code on their business cards.
Restaurants
  • Front Door / Window: people love to check out a menu posted outside a restaurant before deciding to walk in. All restaurants should post a QR code outside their front door for prospective customers to scan. If they don't have time to walk in they can view your mobile website (with your complete menu) on their phone and keep walking, then bookmark it for future use.
  • Take-out Menus: place a QR code on your restaurant's take-out menu so your customers can keep an updated version of your menu on their phone and easily reference it to place a take-out order. No need to worry about your take-out menus not having updated prices and contact information. Soon enough you can completely eliminate your costly printed take-out menus.
  • Tables: place your QR code at every table in your restaurant so customers can learn about your restaurant, get coupons and more.
Hotels
  • Room Key Cards: all hotels should have a mobile website and print a QR code on the guest room key card so guests can learn about the hotel's amenities, browse the room service menu, see local points of interest, and more.
  • Night Stand or Desk: place your hotel's QR code on the night stand or the desk in your rooms.
  • Elevators: place a QR code for your hotel's mobile website in the elevators.
  • Hotel Directory Book: if your hotel has a directory book in every room, you should insert a QR code in the book so guests can view all of the hotel information on their smart phone which can be easily accessed when guests leave the room.

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गर्भवती महिलाओं के लिए लाफ़्टर स्कूल


गर्भवती महिलाओं के लिए लाफ़्टर स्कूल


http://www.bbc.co.uk/hindi/science/2012/07/120730_laughter_js.shtmlइथियोपिया की राजधानी अदीस अबाबा में अफ्रीक़ा का पहला लाफ़्टर स्कूल शुरु हुआ है. गर्भवती महिलाओं के लिए यह स्कूल काफ़ी मददगार साबित हो रहा है. स्कूल को ‘लाफ़्टर फॉर आल’ का नाम दिया गया है.
स्कूल के प्रबंध निदेशक बेलाचीव ग्रेमा ने बीबीसी को बताया, “ हम ज़ोरदार हंसी से गर्भवती महिलाओं से साथ प्रयोग कर रहे हैं. जब हम किसी महिला के गर्भ को हाथ से सहलाते हैं तो इससे हंसी पैदा होती है. इससे पैदा होने वाले उछाल से बच्चा भी पेट में ख़ुशी से हरकत करता है.”
"हम जोरदार हंसी से गर्भवती महिलाओं से साथ प्रयोग कर रहे हैं. जब हम हाथ के किसी महिला के गर्भ को हाथ से सहलाते हैं तो इससे हंसी पैदा होती है. इससे पैदा होने वाले उछाल से बच्चा भी पेट में खुशी से हरकत करता है"
स्कूल के प्रबंध निदेशक बेलाचीव ग्रेमा
ग्रेमा ने बताया कि भारी संख्या में महिलाएं इस स्कूल की सदस्य बन रहीं हैं. लेकिन अन्य लोगों को भी इस स्कूल से काफ़ी फ़ायदा हो रहा है.
ग्रेमा बताते हैं, “हमारे साथ कापस्ते शंत जैसे शख्स भी हैं. इस लॉफ्टर स्कूल में आने के बाद वह काफ़ी स्वस्थ्य, दिमाग़ी तौर पर शांत, तनावमुक्त और पहले से कहीं बेहतर महसूस कर रहे हैं.”
इस लाफ़्टर स्कूल को शुरु करने के पीछे ग्रेमा की अपनी दर्द भरी कहानी है. असल में उन्होंने अपने दर्द को दूसरों के लिए हंसी में बदला है.
ग्रेमा ने बताया, “ दस साल पहले मेरे साथ अग्निकांड हादसा हो गया. इस कारण मैं हंसना भूल गया. इसके बाद एचआईवी से मेरी पत्नी की मौत हो गई. मैं खुद एड्स का शिकार हो गया. मैं पूरी तरह टूट चुका था और अलग-थलग पड़ गया था. ”
लेकिन एकाएक ग्रेमा की ज़िंदगी में कुछ ऐसा हुआ जो उन्हें प्रेरित करने के लिए काफ़ी साबित हुआ.
इस बारे में उन्होंने बताया, “ इसी दौरान मैं दो किताबे पढ़ रहा था. एक साइकॉलजी पर थी और दूसरी थी जॉय आफ़ साल्वेशन. इन्हें पढ़ने के बाद मैं अकेले में ही हंस पड़ता था. लोग मुझ से पूछते कि कहीं मैं सनक तो नहीं गया हूं.”
ग्रेमा ने कहा, “मैंने पाया कि जब लोग ख़ुद पर हंसना सीख लेते हैं तो वे पहले से अधिक सही ढंग से बाकी लोगों के साथ संवाद कायम कर सकते हैं. इससे उन्हें ऊर्जा मिलती है और इसका असर जहन पर पड़ता है. लोग पहले से अधिक नया सोचना शुऱु करते हैं.”

WATER -fuellede car

Engineer in Pakistan Claims to Have 

Invented

              Water-Fuelled Car





ISLAMABAD (AP) — Pakistani officials who have failed for years to fix the country’s rampant energy shortages have latched on to a local engineer’s dubious claim to have invented a water-fuelled car, sparking criticism from experts who bemoan what the episode says about the sorry state of the government.
Excitement over the supposed discovery has been fueled by sensationalist TV talk show hosts, who have hailed the middle-aged engineer, Agha Waqar Ahmed, as a national hero and gushed about the billions of dollars Pakistan could save on oil imports.
Several prominent Pakistani scientists have also jumped on the bandwagon, including the head of the government’s top scientific council and another state-run science foundation.
The only catch seems to be that developing a vehicle that efficiently runs on water defies the basic laws of physics, detractors say. Critical Pakistani scientists say it is the car’s battery, not the water, that’s key to powering the vehicle. That has done little to dent the hype surrounding Ahmed’s invention.
“Demonstration of water-fuelled car astonishes experts,” read the headline in Dawn newspaper at the end of July after the engineer drove his vehicle in front of a crowd of over 100 Pakistani officials, engineers, scientists and journalists at a sprawling sports complex in Islamabad.
Ahmed began the demonstration by disconnecting the rubber hose that fed gasoline into the car’s engine and replacing it with a tube connected to his “water kit.” The engineer says the kit powers the car through the process of electrolysis, whereby a current from the battery passes through distilled water filled with electrolytes, separating out the hydrogen from the oxygen. The hydrogen, which is combustible, is fed into the engine to power it, he added.
“You will see a revolution in Pakistan if we use this technology,” said Ahmed. “Most of our problems are due to shortage of electricity and the increasing energy crisis.”
Pakistan suffers from severe electricity shortages, with some parts of the country experiencing blackouts for up to 20 hours per day. There are various reasons for the crisis, but a core problem has been a shortage of fuel oil and natural gas to run power plants. Natural gas is also used to power many cars in Pakistan.
The power shortages regularly spark protests by citizens angry at the country’s politicians, many of whom are seen as corrupt, and more concerned with keeping power than solving the country’s problems.
One of Ahmed’s biggest supporters has been the religious affairs minister, Khurshid Shah, who like him is from southern Sindh province. Shah drove the engineer’s car during his demonstration and said he was amazed by the performance of the water kit.
“Personally, I am happy and satisfied, and I hope this technology can help in overcoming the energy problems,” said Shah.
He said Prime Minister Raja Pervaiz Ashraf, who used to be the minister for water and power, praised the project and directed a subcommittee of the Cabinet to study its feasibility. The prime minister’s spokesman could not be reached for comment.
Shaukat Pervez, chairman of the Pakistan Council of Scientific and Industrial Research, praised Ahmed and said “this is a feasible project.” His counterpart at the Pakistan Science Foundation, also a government body, hailed the engineer’s work as “an extraordinary breakthrough” and said it would be examined carefully.
Other scientists were distinctly less impressed with Ahmed’s invention.
“In a few short days, he has exposed just how far Pakistan has fallen into the pit of ignorance and self-delusion,” prominent Pakistani physicist Pervez Hoodbhoy wrote in an op-ed in The Express Tribune newspaper on Friday. “No practical joker could have demonstrated more dramatically the true nature of our country’s political leaders, popular TV anchors and famed scientists.”
Khurshid Hasanain, chairman of the physics department at Quaid-i-Azam University in Islamabad, called Ahmed’s claim of inventing a water-fuelled car “nonsensical” because there was no net energy gain from the electrolysis process. He said the amount of energy it takes to split the hydrogen in water from the oxygen is the same or more than you get from burning the hydrogen that is produced – according to the basic laws of thermodynamics – so the battery is effectively running the car and will eventually run out.
Many car companies around the world have been experimenting with fuel cells powered by tanks of pure hydrogen to produce vehicles with greater gas mileage and lower emissions than those that use gasoline. But they have struggled with the lack of hydrogen fueling stations and with the fact that hydrogen is expensive to produce.
Hoodbhoy said the water-fuelled car farce had picked up momentum in Pakistan because “our leaders are lost in the dark, fumbling desperately for a miracle; our media is chasing spectacle, not truth; and our great scientists care more about being important than about evidence.”
At least one person chose to approach the episode with a sense of humor.
“Why are people whining that `laws of thermodynamics cannot be violated?’” tweeted a satirist who goes by the name majorlyprofound. “Tell me one law in Pakistan that has not been violated?”


Read more: http://techland.time.com/2012/08/06/engineer-in-pakistan-claims-to-have-invented-water-fuelled-car/#ixzz23joB3aii


shahnawaj


सड़कों पर पली जिंदगियाँ और उनके सपने

बाल मजदूरी
बाल मजदूरी में लगे बच्चों की जिंदगी को संवारने के कई कोशिशें हो रही हैं लेकिन सब जरूरतमंद बच्चों तक पहुंचना आसान नहीं है.
भारत में बाल श्रम गैरकानूनी है और बच्चों से काम कराने वालों को कड़ी सजा का प्रावधान है.
इसके बावजूद बाल मजदूरी आम है. चार दीवारियों से घिरीं फैक्ट्रियों में ही नहीं, बल्कि खुले आम चल रहे ढाबे और चाय की दुकानों पर अकसर काम करते हुए बच्चे मिल जाते हैं.
ऐसे ही दो बच्चों ने नाम न छापने के आग्रह के साथ अपनी कहानी बीबीसी को बताई, जो इस वक्त दिल्ली में एक गैर सरकारी संगठन 'सलाम बालक ट्रस्ट' के बाल गृह में रहते हैं. उनकी अब तक की जिंदगी कई मुश्किलों से घिरी रही है लेकिन उनमें आगे कुछ करने का जज्बा भी है.

अपनों के होते हुए भी बेसहारा जिंदगी

मैं बागपत का रहना वाला हूं और मेरी उम्र अब 13 साल है. मैं बहुत छोटा था, तभी मेरे माता-पिता की मौत हो गई. हम रिश्तेदारों के होते हुए अनाथ हो गए. इसलिए होटल पर काम करना पड़ा. वहां प्लेट धोने का काम था. लेकिन जरा सी गलती हो जाए, तो बहुत मारा पीटा जाता था.
एक दिन मुझे डंडे से पीटा गया और मुझे बहुत चोट आई. इसलिए वहां से भागना पड़ा. फिर एक ट्रक वाला मुझे अपने पास ले गया. कुछ दिन उसने मुझे रखा, लेकिन एक दिन किसी बात पर नाराज होकर मुझे वहां से निकाल दिया.
ऐसा नहीं है कि हमारे घर पर रिश्तेदार नहीं हैं, लेकिन कोई हमारी जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता. हमारे चाचा थे लेकिन उन्हें शराब की लत थी. और हमारे साथ खूब मारपीट होती थी. सड़कों पर काफी समय यूं ही घूमते फिरते मैं और मेरा भाई, दोनों एक सेंटर में पहुंचे.
बाल मजदूरी विकासशील देशों में एक अहम समस्या है.
वहां कुछ दिन रहने के बाद हमें वापस अपने घर भेजा गया लेकिन फिर वही मारपीट होने लगी. इसलिए वापस सेंटर में आ गए. अब यही सेंटर हमारी जिंदगी और हमारा परिवार है. घर की कमी नहीं खलती.
जिंदगी मुश्किल है. मेरे भाई के अलावा मेरी एक बहन भी है. उसकी शादी हो गई. एक बार हम उससे मिले, उसने पूछा कि कहां रहते. मैंने उसे पूरा पता दिया लेकिन आज तक वो कभी हमसे नहीं मिलने आई.
इस सेंटर में हमें पढ़ाया जाता है और प्यार से रखा जाता है. अब मैं पढ़ाई करता हूं. सातवीं कक्षा में पढ़ता हूं. आगे चल कर मैं या तो ऐक्टर बनना चाहता हूं या फिर क्रिकेटर.
एक्टिंग में मुझे मारधाड़ बहुत पसंद है और अक्षय कुमार मेरे फेवरिट हीरो हैं. उनकी हाउसफुट 2 फिल्म मैंने देखी, बहुत अच्छी लगी. मैं भी ऐसा ही ऐक्टर बनना चाहता हूं. मैं यहां अपने सेंटर में थिएटर में हिस्सा लेता हूं.

नेपाल से दिल्ली तक का सफर

मेरी उम्र नौ साल है और मैं नेपाल का रहने वाला हूं. मेरी मां मुझे कोठी पर काम करवाने के लिए लुधियाना लेकर आई. मैं पांच छह महीने एक कोठी पर काम किया. फिर वहां से भाग गया और जब दोबारा घर पहुंचा तो मेरी मां ने पूछा कि क्यों भाग गया.
जिनके यहां मैं काम करता था, उन्होंने भी कहा कि इसके पैसे ले लो और हम इससे काम नहीं कराएंगे. इसके बाद मेरी मां ने मुझे दूसरी कोठी पर काम पर लगाया. वहां से भी मैं भाग गया लेकिन वहां से घर आने का रास्ता मुझे पता नहीं था.
घरों में बच्चों से अकसर कई तरह के काम लिए जाते हैं और उनके साथ वहां मारपीट भी होती है.
फिर मुझे एक बाबा ने पकड़ लिया. और वो मुझे दिल्ली लेकर आ गया. यहां लाकर उसने मुझे बोतल और कबाडा़ चुगने के काम लगा दिया. रोज मुझसे ये काम कराया जाता था. बस वो खाना खिलाते थे.
लेकिन मुझे वो काम बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था. उसने मुझसे कहा कि तू मुझे अपना पापा समझ और कोई पूछो तो कह देना कि मेरा पापा है. मैंने कई बार वहां से भागने की कोशिश की लेकिन पकड़ा जाता था.
फिर मैंने कबाड़ा खरीदने वाले को बताया कि ये बाबा मेरा पापा नहीं है और मुझे लुधियाना से पकड़ कर लाया हैं. ये सुनकर उन्होंने बाबा को बुलाया और खूब डांटा. और मुझे कबाड़ी अंकल ने चाइल्ड लाइन वाले के पास भेजा. वहां से मुझे यहां सेंटर पर लाया गया और अब मुझे यहां अच्छा लगता है.
अभी मैं यहां चौथी कक्षा में पढ़ता हूं. डांस करना और कराटे मुझे पसंद है. खेलों में मुझे फुटबॉल बहुत पसंद है. आगे चल कर या तो डांसर बनूंगा या फिर फुटबॉलर बनूंगा. लेकिन उसमें अभी बहुत समय पड़ा है. अभी कुछ नहीं कह सकता कि क्या बनूंगा.

syed


अधिक उम्र में पिता बनना बच्चे के लिए अच्छा

पिता का जेनेटिक कोड उसके स्पर्म के माध्यम से उसकी संतानों में जाता है
देर से पिता बनना बच्चों के लिए अच्छा हो सकता है और उनका जीवन लंबा हो सकता है.
अमरीकी वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसे बच्चे, जिनके पिता और दादा की उम्र अधिक होती हो, उनकी जेनेटिक बनावट ऐसी होती है जिससे उनकी आयु अधिक रह सके.
उनके अनुसार किसी व्यक्ति के स्पर्म या वीर्य की जेनेटिक बनावट उम्र के साथ बदलती है और उसका डीएनए कोड ऐसा बन जाता है जिससे उम्र बढ़ती है और ये जेनेटिक कोड वो अपने बच्चों को देता जाता है.
वैज्ञानिकों को इस बात का पता 1,779 लोगों से जुटाए आँकड़ों का परीक्षण करने से चला.
इस अध्ययन के नतीजे अमरीकी संस्था नेशनल एकैडमी ऑफ़ साइंसेज़ के जर्नल पीएनएएस में प्रकाशित किए गए हैं.
वैज्ञानिक ये जानते हैं कि उम्र का संबंध टेलोमेयर जैसी आकृतियों की लंबाई से होता है जो कि हमारे जेनेटिक कोड या डीएनए को रखनेवाले गुणसूत्रों के सिरे पर स्थित होते हैं.
आम तौर पर ये समझा जाता है कि टेलोमेयर छोटा होगा तो उम्र भी छोटी होगी.

लंबाई

"पिता और उसके पूर्वजों के पिता बनने में देरी से, उनकी संतानों में लंबे टेलोमेयर जा सकेंगे जिससे कि उम्र बढ़ सकेगी क्योंकि लोग अधिक उम्र में पिता बनने की सामर्थ्य रख सकेंगे"
अमरीकी शोधपत्र
जूते के फीतों के सिरों पर लगे प्लास्टिक कवर की तरह दिखनेवाले टेलोमेयर क्रोमोसोम या गुणसूत्रों को नुकसान होने से बचाते हैं.
अधिकतर कोशिकाओं में इनकी लंबाई उम्र बढ़ने के साथ-साथ घटती जाती है.
मगर वैज्ञानिकों ने ये पाया है कि स्पर्म में टेलोमेयर की लंबाई उम्र बढ़ने के साथ बढ़ती है.
फिर चूँकि पुरूष अपना डीएनए स्पर्म के ही माध्यम से अपने बच्चों को देते हैं इसलिए अगली पीढ़ी में ये लंबे टेलोमेयर आनुवंशिक गुणों की तरह जा ग्रहण किए जा सकते हैं.
अमरीका की नॉर्थवेस्टर्न युनिवर्सिटी के ऐन्थ्रोपोलॉजी डिपार्टमेंट के डॉक्टर डैन आइज़नबर्ग और उनके सहयोगियों ने टेलोमेयर के बारे में ये अध्ययन फ़िलीपींस में रहनेवाले युवाओं के एक समूह में किया.
उन्होंने रक्त के नमूनों की जाँच में पाया कि ऐसे युवाओं के शरीर में टेलोमेयर लंबे थे जिनके जन्म के समय उनके पिता की उम्र ज्यादा थी.
टेलोमेयर की लंबाई ऐसे युवाओं में और अधिक पाई गई जिनके दादा की उम्र भी पिता बनने के समय अधिक थी.

लाभकारी

वैसे तो पिता बनने में देरी करने से गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है, मगर वैज्ञानिकों का मानना है कि स्वास्थ्य की दृष्टि से इसके दीर्घकालिक लाभ हो सकते हैं.
वैज्ञानिकों को लगता है कि लंबे टेलोमेयरों को आनुवंशिक रूप से ग्रहण करना ख़ास तौर पर ऊतकों और ऐसी जैविक क्रियाओं के लिए लाभकारी हो सकता है जिसमें कोशिकाएँ तेज़ी से बढ़ती और बदलती हैं जैसे कि प्रतिरोधी व्यवस्था आदि.
उनके अनुसार इस बात का आम लोगों के स्वास्थ्य पर अच्छा-खासा असर पड़ सकता है.
शोध में लिखा गया है,"पिता और उसके पूर्वजों के पिता बनने में देरी से, उनकी संतानों में लंबे टेलोमेयर जा सकेंगे जिससे कि उम्र बढ़ सकेगी क्योंकि लोग अधिक उम्र में पिता बनने की सामर्थ्य रख सकेंगे."
न्यूकास युनिवर्सिटी में कोशिका विज्ञान के विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर टॉमस वॉन ज़गलिनिस्की कहते हैं कि इस दिशा में और शोध ज़रूरी है.
उनका कहना है कि अभी कई बातें स्पष्ट नहीं हैं, जैसे ये कि क्या जन्म के समय टेलोमेयर की लंबाई और उम्र के साथ उसके घटने की बात, उम्र के कारण शरीर पर पड़नेवाले दूसरे प्रभावों से अधिक महत्वपूर्ण है
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